10 अप्रैल 2023

 कहमुकरी/ मुकरी

 

 

1.

वो तो मौन सदा ही रहता।

ना कुछ कहता ना कुछ सुनता।

हुआ नहीं है अब तक बुड्ढा।

क्या सखि साजन? ना सखि गुड्डा।

2.

कितना प्यारा कितना न्यारा।

सबका है ये राज़ दुलारा।

इससे फैले है उजियारा।

क्या सखि बालक? ध्रुवतारा।

3.

जगह-जगह वो बैठे जाये।

पकड़ो भी तो हाथ आये।

नहीं दोस्ती मैंने रक्खी।

क्या सखि तितली? ना सखि मक्खी।

4.

गोल-गोल वो घूमे जाती।

थके ख़ुद पर हमें थकाती।

मुझको लगती है वो झक्की।

क्या सखि मक्खी? ना सखि चक्की।

5.

आँख मिचौली मैं तो खेलूँ।

जब चलो मैं साथ में हो लूँ।

इक माँ की हैं दोनों जाई।

क्या सखि बहना? ना परछाई।

6.

वैसे तो मुझको ये भाती।

पर मेरी ये समझ आती।

लगती मुझको है अलबेली।

क्या है, सहेली? नहीं पहेली।

7.

देखो कैसे दौड़ लगाती।

बाधा कोई रोक पाती।

बनती ना मेरी ये जिगरी।

क्या सखि बिजुरी? ना सखि बदरी।

8.

सबने कर ली है तैयारी।

हार मिलेगी इसको भारी।

कोशिश सबकी है ये जारी।

क्या सखि रण है? महामारी। 

9.

मेरे काँधों पर है चढ़ती।

दिनभर उछल कूद है करती।

ये तो है आफ़त की पुड़िया।

क्या सखि बिटिया? ना सखि चिड़िया।

10.

बोल-बोलकर घर भर देता।

बातें करता साँस लेता।

रातों को ही बस ये सोता।

क्या सखि बेटा? ना सखि तोता।

11.

रंगों को आती बिखराती।

सबके मन को है हर्षाती। 

नीयत सबकी इस पर फिसली।

क्या सखि होली? ना सखि तितली।

12.

हरदम मेरे पीछे आता।

धमाचौकड़ी ख़ूब मचाता।

रोके पर भी ना वो रुकता।

क्या सखि, बच्चा? ना सखि कुत्ता।

13.

आकर जल्दी ना ये जाती।

हाथ-पैर सबके फुलवाती।

हालत इसने ख़स्ता कर दी।

क्या है, परिक्षा? ना सखि सर्दी।

14.

जब मैं चलती तब ही चलता।

कभी दौड़ता कभी टहलता।

मेरे तो मन को है छूता।

क्या सखि कुत्ता? ना सखि जूता।

15.

गोल-गोल आँखें झपकाता।

आहट होते ही जग जाता।

दिखता है ये ढुल्लू-मुल्लू।

क्या सखि बच्चा? ना सखि उल्लू।

16.

मंज़िल तक हमको पहुँचाता।

सरपट-सरपट दौड़ा जाता।

समय हमेशा लेता थोड़ा।

क्या सखि इंजन? ना सखि घोड़ा।

17.

इस पे मैं बलिहारी जाऊँ।

दूर कभी ना इससे जाऊँ

ये रूठे तो बनूँ फ़क़ीरा।

क्या सखि साजन? ना सखि हीरा।

18.

मुझसे बस ये लिपटा जाये।

दूर हटाऊँ हट ना पाये।

लहराए जब लगे निराला।

क्या सखि आँचल ? ना सखि जाला।

19.

ख़ुशबू इसकी मुझ तक आये।

मेरे तन-मन को महकाये।

बाँध सके ना इसको बंधन।

क्या सखि चम्पा? ना सखि चंदन।

20.

जब मैं सोऊँ तब वो आये।

कैसे-कैसे है बहलाये।

बस में कर लेता बन अपना।

क्या सखि चंदा? ना सखि सपना।

21.

मनोरंजन ज्ञान बढ़ाये।

सबकी ये आँखें बन जाये।

देखें बच्चे, बूढ़े, बीवी।

क्या सखि दर्पण? ना सखि टी०वी०।

22.

रखता हीरे, मोती, सोना।

चलता रहता पाना खोना।

हो जाती है इससे चोरी।

क्या सखि सागर? नहीं तिजोरी।

23.

जो भी दे बस अच्छा लागे।

लेने से मन कभी भागे।

हो खुला या कि बंद लिफ़ाफ़ा।

क्या सखि पैसा? सखि तोहफ़ा।

24.

जब वो लिपटे मुझको भाए।

नरम-नरम सा मुझे लुभाए।

जैसे हो वो मेरा संबल।

क्या सखि बच्चा? ना सखि कंबल।25.

प्रेम मिले तो ये मुस्काते।

विरह मिले तो हैं मुरझाते।

संग रहे हैं दिन रैना।

क्या सखि गुलशन? ना सखि नैना।

26.

उसके रहते डर ना लगता।

दिन में सोता रातों जगता।

ललकारे है किसमें बूता।

क्या सखि प्रहरी? ना सखि कुत्ता।

27.

उसके रहते मैं ख़ुश रहती।

सारे काम उसी से कहती।

मैं रहती जैसे पटरानी।

क्या बहुरानी? नौकरानी।

28.

घर में जब से वो आया था।

सब पर जादू सा छाया था।

सभी दुखी हैं उसको खोकर।

क्या सखि कुत्ता? ना सखि नौकर।

29.

मैं तो उसके सँग में गाऊँ।

वो ना थकता मैं थक जाऊँ।

है सुर-तालों का वो राजा।

क्या सखि साजन? ना सखि बाजा।

30.

सारी ख़बर उसे है रहती।

मैं उसकी वो मेरा साथी।

ऐसा है उसका इस्टाइल।

क्या सखि साज़न? ना मोबाइल।

31.

होंठो को जब ये छू जाये।

मीठी-मीठी प्यास जगाये।

मैं उसको कहती हूँ सुल्फ़ी।

क्या है सिगरट? ना सखि क़ुल्फ़ी।

32.

शीतलता मुझमें भर जाये।

मेरे मन को है वो भाये।

करती मैं उसका अभिनंदन।

क्या सखि ईश्वर? ना सखि चंदन।

33.

सबने इसकी क़ीमत जानी।

हो गरीब या राजा रानी।

इसके बिन जीवन बेमानी।

क्या सखि मारुत? ना सखि पानी।

34.

सूरज छिपते ही जाता।

जी भरकर फिर ख़ूब सताता। 

तब लौटे जब होय सवेरा। 

क्या सखि मच्छर? नहीं अँधेरा।

35.

देखूँ उसको मन खिल जाये।

ख़ुशबू से मुझको महकाये।

देख पाऊँ सूरत झुलसी।

क्या सखि क्यारी? ना सखि तुलसी।

36.

मुझे रोज़ ही वो बहलाता।

धुनें बनाता और सुनाता।

फैला उसका ही है औरा।

क्या सखि साजन? ना सखि भौंरा।

37.

जब मैं सोऊँ तब वो आये।

कैसे-कैसे है बहलाये।

बस में कर लेता बन अपना।

क्या सखि चंदा? ना सखि सपना।

38.

खाली रहना इसे भाए।

भर जाए तो खुश हो जाए।

मुन्नी रक्खे, रक्खे बबुआ।

क्या सखि डलिया? ना सखि बटुआ।

39.

जाती है बिना बुलाए।

जी भरकर फिर हमें छकाए।

हालत इसने पतली कर दी।

क्या महँगाई? ना सखि सर्दी।

40.

बिन गाए ये नाचे जाती।

ठुमक-ठुमक कर दिल बहलाती।

दिखने में ये पतली दुबली।

क्या सखि गुड़िया? ना सखि तकली।

41.

रख लो जैसे ये रह लेती।

कूड़ा कचरा सब सह लेती।

चुप रहती देती ना गाली

क्या सखि नारी? ना सखि नाली।

42.

मेहनत की ये देता शिक्षा।

ये हो तो ना माँगें भिक्षा।

लेता है ये कठिन परिक्षा।

क्या सखि शिक्षक? ना सखि रिक्शा।

43.

करतब हमको ख़ूब दिखाता।

ख़ुद भी हँसता हमें हँसाता।

देते ताली सब ख़ुश होकर

क्या सखि बंदर? ना सखि जोकर।

44.

बच्चा अपने से चिपकाता।

उछल-कूद ये ख़ूब मचाता।

पीता है ये दवा दारू।

क्या सखि बंदर? ना कंगारू।

45.

बिना रुके बस चलता जाए।

अपनी मंज़िल को ये पाए।

बूझो इसको कर अवगाहन।

क्या सखि कछुआ? ना सखि वाहन।

46.

कितने ही रूपों में मिलती।

बटन दबाने पर ये चलती।

इसकी मार पड़े है भारी।

क्या सखि पिस्टल? ना पिचकारी।

47.

धूप-छाँव सब साथ गुज़ारे।

जीते कभी, कभी है हारे।

एक समय सब खोते आपा।

क्या सखि जीवन? नहीं बुढ़ापा।

48.

कहीं-कहीं ये जरा जाती।

और कहीं पे कहर ढहाती।

इस पे चलती नही सिफ़ारिश।

क्या सखि गर्मी? ना सखि बारिश।

49.

दूर-दूर तक दौड़ लगाता।

हाथ किसी के कभी आता।

ये सबका है प्यारा धावक।

क्या सखि घोड़ा? ना सखि शावक।

50.

सब इसको काँधे पे लेते।

इज़्ज़त मान सभी हैं देते।

बिकता है ये महँगा, सस्ता।

क्या सखि हीरो? ना सखि बस्ता।

 

डॉ० भावना कुँअर

ऑस्ट्रेलियासिडनी

 

डॉ०  भावना कुँअर संपादक- ऑस्ट्रेलियांचल ई-पत्रिका